नालंदा विश्वविद्यालय, भारतीय ऐतिहासिक और सांस्कृतिक समृद्धि का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यह विश्वविद्यालय बौद्ध धर्म और विज्ञान के क्षेत्र में प्रसिद्ध था और इसका नाम दुनिया भर में शिक्षा और ज्ञान के क्षेत्र में उच्चतम गुणवत्ता के लिए पहचाना जाता था। नालंदा विश्वविद्यालय का निर्माण 5वीं सदी में भारतीय धार्मिक और शैक्षिक गुरुकुल परंपरा का हिस्सा था। इस विश्वविद्यालय की स्थापना आचार्य श्रीलाक्ष्मण ने की थी, और इसने विश्वभर में छाया दालने वाले उद्दारणीय विद्यार्थियों को दिया। नालंदा विश्वविद्यालय के शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में उत्कृष्टता का विरासती विवरण है, और इसका अध्ययन आज भी विश्वभर में भौतिक और आध्यात्मिक शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। नालंदा विश्वविद्यालय एक अद्वितीय सांस्कृतिक स्थल है जो भारतीय शिक्षा की महत्वपूर्ण और महात्मा बुद्ध के धरोहर का हिस्सा है।
नालंदा एक प्रशंसित महाविहार था, जो भारत में प्राचीन साम्राज्य मगध (आधुनिक बिहार) में एक बड़ा बौद्ध मठ था। यह साइट बिहार शरीफ शहर के पास पटना के लगभग 95 किलोमीटर दक्षिणपूर्व में स्थित है, और पांचवीं शताब्दी सीई से 1200 सीई तक सीखने का केंद्र था। यह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है।
वैदिक शिक्षा के अत्यधिक औपचारिक तरीकों ने तक्षशिला, नालंदा और विक्रमाशिला जैसे बड़े शिक्षण संस्थानों की स्थापना को प्रेरित करने में मदद की, जिन्हें अक्सर भारत के शुरुआती विश्वविद्यालयों के रूप में चिह्नित किया जाता है। नालंदा 5 वीं और छठी शताब्दी में गुप्त साम्राज्य के संरक्षण के तहत और बाद में कन्नौज के सम्राट हर्ष के अधीन विकसित हुए। गुप्त युग से विरासत में मिली उदार सांस्कृतिक परंपराओं के परिणामस्वरूप नौवीं शताब्दी तक विकास और समृद्धि की अवधि हुई। बाद की शताब्दियों में धीरे-धीरे गिरावट का समय था, एक अवधि जिसके दौरान बौद्ध धर्म के तांत्रिक विकास पूर्वी साम्राज्य में पाला साम्राज्य के तहत सबसे अधिक स्पष्ट हो गए थे।
भारत दुनिया का एक अद्धभुत देश है। यहां की कला, संस्कृति, त्यौहार, परंपरा, रिवाज सब कुछ अनूठा है। शायद भारत में जितनी विविधता है, दुनिया के किसी देश में नहीं है। भारत ने दुनिया को बहुत कुछ दिया है। शिक्षा के स्तर पर, आज बेशक भारत दुनिया के फलक पर पिछड़ा हो लेकिन अतीत में एक काल ऐसा भी रहा, जब भारत में स्थित शिक्षण संस्थान में दुनिया भर से विद्यार्थी पढ़ने आते थे। यहां पर दी जाने वाली शिक्षा का दुनियाभर में महत्व था। यहां पढ़के विद्याथी गौरान्वित महसूस करते थे। जी हाँ हम बात कर रहे है नालंदा विश्वविद्यालय की, एक ऐसा शैक्षणिक संस्थान जो मशहूर था अपने उच्च स्तरीय पाठ्यक्रम के लिए। यहां पर बहुत सारे विषयो की पढाई करवाई जाती थी। बिहार राज्य के नालंदा जिला में स्थित नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष आज भी उस महान संस्थान की गौरव गाथा कहते हैं। जिसे भुलाये नहीं भुलाया जा सकता।
भारत बौद्ध धर्म और शिक्षा का केंद्र रहा है। यह एक ऐसा धर्म था जिसने दुनिया को शांति और सद्भावना का पाठ पढ़ाया। बौद्ध धर्म का विस्तार न केवल भारत में हुआ बल्कि विश्व के बहुत सारे देशो तक इसने अपनी पहुँच बनाई। इसके केंद्र में तक्षशिला और नालन्दा जैसे विश्वविख्यात विश्वविद्यालय थे, जिन्होंने बौद्ध धर्म की शिक्षा को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया और इसके प्रसार में योगदान दिया। नालंदा विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र होने के साथ-साथ बौद्ध अनुयायियों के लिए भी बहुत मायने रखता है। दुनिया का एक महान विश्वविद्यालय किस तरह रचा, बसा और फिर उजड़ा, इसे ही हम बताने वाले हैं। इस लेख में हमने नालांदा यूनिवर्सिटी के इतिहास के साथ नालांदा यूनिवर्सिटी किसने बनाया और नालंदा विश्वविद्यालय क्यों प्रसिद्ध है, जैसे महत्वपूर्ण सवालों को शामिल किया है। नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास समझना इसलिए भी जरूरी है क्यूंकि इसका भारत से बहुत गहरा नाता है, अतीत की शिक्षा व्यवस्था कैसी थी इसे जानकार ही आज के युवा अपने बेहतर भविष्य के लिए योजना बना पाएंगे, साथ ही इस महान संस्थान के बारे में जानकार उन्हें अपने भारतीय होने पर गर्व का अनुभव भी होगा।
जहां तक बात है नालंदा का मतलब की तो, ऐसा कहा जाता है की ये संस्कृत के शब्द से मिलकर बना है। नालंदा – ‘ नालम ‘ यानी की ‘ कमल ‘ और ‘ दा ‘ का मतलब ‘ देना ‘ , कमल को ज्ञान का प्रतीक भी माना जाता है। इसलिए इसका पूरा अर्थ हो जायेगा ‘ ज्ञान देने वाला ‘। इसके अलावा इसके अन्य अर्थ भी बताये जाते हैं जैसे ये भी माना जाता है की नालन्दा संस्कृत के शब्द ना + आलम + दा से मिलकर बना है, इसे एक ऐसे ज्ञान के रूप में परिभाषित किया जाता है जो ‘कभी रुकता नहीं’ है। इस तरह नालंदा को ज्ञान के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है।
नालंदा विश्वविद्यालय बिहार की राजधानी पटना से लगभग 90 किलोमीटर दूर दक्षिण-पूर्व में स्थित है। इसके पास का सबसे मशहूर टूरिस्ट डेस्टिनेशन राजगीर है, जो अपने खूबसूरत प्राकृतिक नज़ारो के लिए जाना जाता है। यहां पर बहुत सारे सैलानी आते है। राजगीर भी एक बहुत महत्वपूर्ण शहर है, राजगीर मगध साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी। राजगीर को प्राचीन समय में राजगृह के नाम से जाना जाता था।
प्राचीन समय में उच्च शिक्षा के लिए नालंदा विश्वविद्यालय का नाम अग्रणी था। इसमें पढ़ने वाले विद्यार्थी बहुत दूर-दूर से आते थे। आज भारत के जितने भी पडोसी मुल्क है उन सब से, किसी समय विद्यार्थी यहां आकर शिक्षा ग्रहण करते थे। नालंदा उच्च शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र तो था ही साथ ही में ये एक आवासीय विश्वविद्यालय भी था जो इसकी खासियत बयां करती है। इस शिक्षा के केंद्र की ख्याति दूर-दूर तक थी। कहते हैं नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण करना सबके बूते की बात नहीं थी क्यूंकि इसमें प्रवेश परीक्षा के आधार पर दाखिला होता था और ये प्रवेश परीक्षा बहुत कठिन हुआ करती थी जिसे उत्तीर्ण कर पाना सबके लिए संभव नहीं था। ऐसा नहीं है की नालंदा विश्वविद्यालय पहला विश्वविद्यालय था बल्कि इसके पहले भी भारत में एक विश्वविद्यालय मौजूद था जो की नालंदा से बहुत पहले बना था। इसका नाम तक्षशिला विश्वविद्यालय था, जो अभी पाकिस्तान में है। लेकिन नालंदा की खासियत ये थी की ये अपने समय की सबसे आधुनिक शिक्षण संस्थान हुआ करती थी। जिसमे बहुत सारे विषयो को पढाई करवाई जाती थी। नालंदा विश्वविद्यालय का सम्बन्ध बौद्ध धर्म से भी है। ऐसा माना जाता है की गौतम बुद्धा और महावीर ने अपने जीवन के कुछ महत्वपूर्ण दिनों को नालंदा और राजगीर में बिताया था। यहां बौद्ध शिक्षा भी बहुत प्रचलित थी।
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय गुप्ता वंश के शासक कुमारगुप्त प्रथम को जाता है। नालंदा विश्वविद्यालय का निर्माण पांचवी सदी में करवाया गया था। यह भारत ही नहीं बल्कि दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय था। जिसमे पढ़ने के लिए बहुत से देशो से विद्यार्थी आते थे। शासक कुमारगुप्त प्रथम के बाद के शासको ने भी इस महान विश्वविद्यालय को संरक्षण देने का कार्य किया जिसमे सबसे प्रमुख नाम सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों है। इन शासको ने अपने-अपने समय में अलग-अलग तरीके से इसे संरक्षित करने के साथ-साथ इसके विस्तार पर भी ध्यान दिया। नालंदा विश्वविद्यालय को दूसरा सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय माना जाता है। पहला सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय तक्षशिला को कहा जाता है। ये अपने समय का बहुत ख़ास शैक्षणिक संस्थान था जो स्थापत्य कला का बहुत शानदार नमूना था।
नालंदा विश्वविद्यालय में प्रवेश पाना सबके लिए संभव नहीं था क्यूंकि इसमें बहुत कठिन परीक्षा के आधार पर दाखिला होता था। इस विश्वविद्यालय में योग्यतानुसार ही शिक्षा ग्रहण किया जा सकता था। यहां पर धर्मशास्त्र, व्याकरण, तर्कशास्त्र, खगोल विज्ञान, तत्वमीमांसा, चिकित्सा, दर्शनशास्त्र जैसे महत्वपूर्ण विषय पढ़ाये जाते थे। यहां पर जापान, चीन, इंडोनेशिया, कोरिया, तिब्बत, ईरान, फारस आदि देशो से छात्र आकर शिक्षा ग्रहण करते थे। कहते हैं इसके पुस्तकालय में हज़ारो की संख्या में पांडुलिपियों सहित अन्य दुर्लभ हस्त लिखित पुस्तकें मौजूद थी जो ज्ञान का भंडार थी। इसके पुस्तकालय में आचार्यों और विद्यार्थियों के अध्ययन को सुगम बनाने के लिए हर तरह की अध्ययन सामग्री उपलब्ध थी। इसके अलावा यहां पर छात्रावास की सुविधा भी मौजूद थी जिसमे विद्यार्थियों के रहने की व्यवस्था थी। नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय की तीन बड़ी-बड़ी इमारतें थी जिनके नाम इस प्रकार थे :- रत्नरंजक , रत्नोदधि , रत्नसागर । नालंदा विश्वविद्यालय से नागर्जुन, धर्मकीर्ति, वासुदेव, धर्मपाल, शीलभद्र, जैसे दिग्गज व्यक्तित्व जुड़े थे।
भारत में जब ज्ञान फल-फूल रहा था उस समय दुनिया के अलग-अलग कोने से यात्री आकर इस अद्भुत जगह को एक्स्प्लोर कर रहे थे। इसी कड़ी में चीन के एक यात्री, ह्वेनसांग ने सातवीं शताब्दी में भारत का दौरा किया और नालंदा को अपने केंद्र में रखा। ह्वेनसांग एक बौद्ध भिक्षु था जो बौद्ध अनुयायी के रूप में भारत यात्रा करने आया था, और साथ ही भारत को समझना भी चाहता था। ह्वेनसांग ने कुछ समय नालंदा में भी बिताया था और यहां रहकर बौद्ध योगशास्त्र, तर्कशास्त्र, व्याकरण, संस्कृत आदि विषयो का अध्ययन किया। नालंदा के इतिहास की बहुत सी जानकारी ह्वेनसांग के विवरणों से मिलती है। इसके अलावा चीनी यात्री इत्सिंग ने भी नालंदा के बारे में बहुत कुछ बताया जिस से इस बात का पता चलता है उस दौर में ये विश्वविद्यालय किस तरह संचालित किया जाता था। इनके यात्रा वृत्तांत व संस्मरणों से नालंदा विश्वविद्यालय के बहुत बड़े शिक्षण केंद्र होने का पता चलता है।
प्रचीन समय में बौद्ध धर्म का विस्तार एक बहुत बड़े क्षेत्र तक था। बौद्ध अनुयायी न केवल भारत में बल्कि भारत के अलावा दूसरे देशो में भी देखे जा सकते थे। बौद्ध शिक्षा और इसके प्रसार के लिए समय-समय पर बहुत सारे लोगो ने प्रयास किये। बहुत से ऐसे सम्राट भी हुए जिन्होंने बौद्ध धर्म को अपने जीवन के केंद्र में रखा। ऐसे ही एक सम्राट का नाम सम्राट अशोक था। सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार और प्रसार के लिए बहुत से कार्य किये साथ ही बहुत सारे स्तूपों का भी निर्माण करवाया। नालंदा महाविहार में भी काफी स्तूप और मठ थे, जिनमे बौद्ध-भिक्षु रहकर अपना ध्यान और अध्ययन किया करते थे। यहां बौद्ध शिक्षा केंद्र भी था। यही वजह है की बौद्ध भिक्षुओ के लिए ये जगह तीर्थस्थान के सामान था और दुनिया के अलग-अलग हिस्से से आकर यहां पर पढ़ना और रहना चाहते थे। यहां पर बौद्ध धर्म से सम्बंधित बहुत सी पांडुलिपियां भी अध्ययन के लिए उपलब्ध थी। ऐसा भी कहा जाता है की यहां पर भगवान बुद्ध की मूर्तियां भी थी जो ध्वस्त हो चुकी है।
विश्व के महानतम विश्वविद्यालय में से एक नालंदा विश्वविद्यालय का पतन कैसे हुआ ये जानने की इच्छा लगभग हर उस व्यक्ति के मन में रहती है जिनकी इतिहास में रूचि है। कुछ प्रश्न जैसे नालंदा यूनिवर्सिटी किसने जलाया को जानना जरूरी है। इस प्राचीन शिक्षा के केंद्र को एक हमले में ध्वस्त कर दिया गया था। बख्तियार खिलजी के आक्रमण ने नालंदा विश्वविद्यालय को आग के हवाले कर दिया और इसे नेस्तनाबूत करने का प्रयास किया। ऐसा कहा जाता है की बख्तियार खिलजी के बीमार पड़ जाने के बाद नालंदा विश्वविद्यालय के एक वैद्य ने बहुत ही चतुराई से बख्तियार खिलजी को ठीक कर दिया किन्तु आक्रमणकारियो के अपने वैद्य इलाज़ करने में नाकाम रहे जिस कारण प्रतिशोध की भावना के कारण इस ज्ञान के केंद्र को आग के हवाले करके तबाह कर दिया गया। ततपश्चात यहां रखी हज़ारो पांडुलिपियों और दुर्लभ हस्त लिखित पुस्तकें भी जलकर बर्बाद हो गए। इस तरह एक लम्बे अरसे तक चलने वाला ये ज्ञान का केंद्र बारहवीं शताब्दी में खंडहर में तब्दील हो गया।
हमले के उपरांत नालंदा महाविहार खंडहर में तब्दील हो गया। यहां पर एएसआई द्वारा 1915-37 और 1974-82 में की गई खुदाई ने इतिहास के इस बेहतरीन ढांचे से सम्बंधित बहुत से राज़ से पर्दा उठाया। एएसआई की खुदाई में ये बात सामने आयी की यहां पर ईंटों के छह मंदिर और ग्यारह मठों को एक यथाक्रम लेआउट पर व्यवस्थित किया गया। इस पूरी संरचना से सम्बंधित एक महत्वपूर्ण बात ये सामने आयी की इसका 30 मीटर चौड़ा रास्ता उत्तर से दक्षिण की ओर बना है, इसके पश्चिम में कतार से मंदिरों की शृंखला है और पूर्व में मठ हैं।
यहां पर खुदाई में अबतक बुद्धा की बहुत सी मूर्तियां और चित्र भी मिल चुके हैं जो कांस्य , प्लास्टर , और पत्थर के बने है। इन्ही में कुछ महत्वपूर्ण अलग-अलग मुद्रा में प्राप्त बुद्ध की प्रतिमा अवलोकितेश्वर , मञ्जुश्री , तारा , प्रज्ञापारमिता , जम्भला आदि है। इसके अलावा कुछ महत्वपूर्ण खोज जो नालंदा से खंडहरों से प्राप्त हुई है वो है भित्ति चित्र, टेराकोटा, पट्टिकाएं, पेंटिंग, पत्थर और ईंटों के शिलालेख, तांबे की प्लेट, मुहरें, सिक्के, मिट्टी के बर्तन आदि।
मठ और शैक्षिक संस्थान के रूप में नालंदा महविहार ने अपनी पहचान देश और दुनिया में बनाई। इसमें स्तूप, मंदिर, विहार (आवासीय और शैक्षिक भवन) आदि शामिल थे। इसने एक लम्बे अरसे तक देश और दुनिया को अपने ज्ञान दीप से प्रकाशित किया। साल 2016 में नालंदा महाविहार को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया गया। ये स्थान बौद्ध सर्किट का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसी के साथ पर्यटन के लिहाज से भी बहुत मायने रखता है।
नालंदा विश्वविद्यालय को एक नया स्वरुप देकर इसके पुराने वैभव को लौटाने के प्रयास की कड़ी में, बिहार के राजगीर में इसका एक नया कैंपस तैयार किया जा रहा है। इसका नया-नवेला रूप इतिहास और आधुनिकता के एक बेहतरीन नमूने को प्रस्तुत करता है। इसकी बनावट और निर्माण कला अद्भुत है। इसका नया ढांचा नालंदा महाविहार के उस पुराने गौरव की याद दिलाएगा, जिसका सैकड़ो साल पहले अस्तित्व था। इस महान नालंदा यूनिवर्सिटी रिवाइवल के लिए बहुत से देशो ने दिलचस्पी दिखाई साथ ही सहयोग भी किया। क्यूंकि उनका बौद्ध विचारो से बहुत गहरा नाता है। तो बहुत जल्द नालंदा विश्वविद्यालय अपने नए अवतार में नज़र आने वाला है।
नालंदा के खण्डहर आज बेशक अपने पुराने स्वरुप में न हो लेकिन इतिहास में एक दौर ऐसा था जब इसने देश और दुनिया को बड़े बड़े धुरंधर दिए, जिन्होंने अपने हुनर से समाज का कल्याण करने का कार्य किया। आज का नालंदा इतिहास के नालंदा से बेहद जुदा हो सकता है लेकिन आत्मा और भाव आज भी वही है, जो सैकड़ो साल पहले हुआ करती थी। आज भी यहां की दीवारें अपने गौरव गाथा का बखान करती है और यही वजह है की देश और दुनिया से बड़ी संख्या में लोग इसके दर्शन करने आते हैं। बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए तो ये तीर्थस्थल के सामान है।
इस लेख में हमने नालांदा यूनिवर्सिटी के इतिहास के साथ साथ नालंदा यूनिवर्सिटी को किसने बनाया को विस्तारपूर्वक बताया। नालंदा का इतिहास क्या है जैसे महत्वपूर्ण प्रश्नो को जानना अति महत्वपूर्ण है क्यूंकि नालन्दा महाविहार का प्राचीन भारत से बहुत गहरा नाता है साथ ही इसे समझकर हम उस इतिहास को जी सकते हैं जिसका किसी दौर में अस्तित्व था। नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास युवाओ, छात्रों के साथ-साथ हर उस व्यक्ति से सम्बंधित है जिन्हे भारत के इस अद्भुत और ज्ञान के केंद्र के बारे में जानकारी होनी चाहिए। इसके अलावा नालंदा विश्वविद्यालय को क्यों जलाया गया था जैसे प्रश्नो को भी हमने इस लेख का हिस्सा बनाया ताकि आप इसके समग्र परिपेक्ष्य को जान सके। हर गुजरते वक़्त के साथ नालंदा यूनिवराइटी की स्टोरी और अधिक प्रचलित होती जाएगी क्यूंकि जैसे-जैसे बच्चो तक इसकी जानकारी पहुंचेगी उन्हें खुद पर और इस इस देश की ज्ञान पर गर्व का अनुभव जरूर होगा।